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Chhat Puja(छठ पूजा) भारत के प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों में से एक है, जो विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता और छठी मइया की पूजा-अर्चना करके उनसे परिवार की सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करना होता है। यह पूजा पर्यावरण और समाज के साथ गहरे संबंध की प्रतीक है, जहां लोग नदी, तालाब या किसी जलस्रोत के किनारे सूर्य देवता को अर्घ्य देकर प्रकृति के साथ अपनी आस्था का प्रदर्शन करते हैं।
Chhat Puja(छठ पूजा) केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भारत की लोक संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक विश्वासों का अभिन्न अंग है। इस पर्व में भक्त कठिन व्रत, स्नान, उपवास, और जलाशयों में खड़े होकर सूर्य देव की उपासना करते हैं। यह पूजा विशेष रूप से उन महिलाओं द्वारा की जाती है, जो संतान सुख, परिवार की भलाई और समृद्धि की कामना करती हैं।
Chhat Puja(छठ पूजा) का महत्व
Chhat Puja(छठ पूजा) सूर्य देव और छठी मइया को समर्पित एक प्राचीन और अद्वितीय पर्व है। हिंदू धर्म में सूर्य देव को जीवन का दाता माना जाता है, और उनकी पूजा करने से जीवन में सकारात्मकता और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है। सूर्य देव की पूजा चार दिनों तक चलती है, जिसमें भक्त अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने और जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त करने की कामना करते हैं।
Chhat Puja(छठ पूजा) का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अद्वितीय है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान सूर्य से ऊर्जा, शक्ति, और समृद्धि की कामना करना है। साथ ही, यह पर्व लोक संस्कृति का जीवंत उदाहरण है, जो भारत के ग्रामीण जीवन और सामाजिक संरचना में गहरी जड़ें रखता है।
Chhat Puja(छठ पूजा) के दौरान महिलाएं कठिन व्रत रखती हैं और बिना अन्न-जल ग्रहण किए अपने परिवार और समाज के लिए प्रार्थना करती हैं। इस पूजा में सूर्य देव की कृपा से परिवार की भलाई और जीवन में शांति प्राप्त होती है। इसके अलावा, छठी मइया की उपासना करने से संतान सुख और परिवार की समृद्धि की कामना की जाती है।
Chhat Puja(छठ पूजा) की पौराणिक कथाएं
Chhat Puja(छठ पूजा) से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं हैं, जो इस पर्व को और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं। सबसे प्रमुख मान्यता महाभारत काल से जुड़ी है, जहां द्रौपदी और पांडवों ने कष्ट और दुखों से मुक्ति पाने के लिए सूर्य देव की आराधना की थी। इस पूजा से उनका जीवन सुखमय हो गया और उनके सभी दुख दूर हो गए। इसके अलावा, एक अन्य कथा राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी से जुड़ी है, जिन्होंने संतान सुख की प्राप्ति के लिए छठी मइया की पूजा की थी।
Chhat Puja(छठ पूजा) की एक और महत्वपूर्ण कथा रामायण काल से जुड़ी है। मान्यता है कि भगवान राम और माता सीता ने अपने वनवास से लौटने के बाद इस पूजा को अयोध्या में बड़े धूमधाम से मनाया था। राम और सीता ने सूर्य देव की उपासना की और उनके आशीर्वाद से अयोध्या में सुख-शांति का वास हुआ।
Chhat Puja(छठ पूजा) की प्रक्रिया
Chhat Puja(छठ पूजा) चार दिनों का पर्व है, जिसे बड़ी धूमधाम और नियमों के साथ मनाया जाता है। इन चार दिनों में व्रती (जो व्रत रखते हैं) कठोर अनुशासन का पालन करते हैं और शुद्धता के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। इस पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
1. पहला दिन (नहाय-खाय):
Chhat Puja(छठ पूजा) का पहला दिन नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती स्नान करके पवित्र होते हैं और अपने घर की सफाई करके पवित्र भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन कद्दू-भात का सेवन किया जाता है, जिसे व्रती स्वयं बनाते हैं और परिवार के अन्य सदस्य भी इसे ग्रहण करते हैं।
2. दूसरा दिन (लोहंडा और खरना):
दूसरे दिन लोहंडा और खरना का आयोजन होता है। इस दिन व्रती दिनभर का उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं। इस भोजन को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। खरना के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास प्रारंभ करते हैं, जिसमें वे पानी तक का सेवन नहीं करते।
3. तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य):
तीसरे दिन व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर संध्या अर्घ्य देते हैं। इस अर्घ्य के लिए विशेष रूप से बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ, गन्ना और दीपक रखकर सूर्य देव की उपासना की जाती है। इस समय छठी मइया की विशेष पूजा की जाती है और उनसे परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
4. चौथा दिन (प्रातः अर्घ्य):
Chhat Puja(छठ पूजा) का अंतिम दिन प्रातः अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती सुबह के समय उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस पूजा के बाद व्रत का समापन होता है और व्रती अपना उपवास तोड़ते हैं।

Chhat Puja(छठ पूजा) के दौरान होने वाली विशेषताएं
Chhat Puja(छठ पूजा) के दौरान विशेष रूप से व्रती नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। इस पूजा में सामूहिक रूप से एकत्रित होकर पूजा करना एक खास विशेषता है। लोग अपनी आस्था और श्रद्धा के साथ नदी या तालाब के किनारे एकत्रित होते हैं और सूर्य देवता को जल अर्पण करते हैं।
इस पूजा में प्रयुक्त होने वाले प्रसाद भी विशेष होते हैं, जिनमें ठेकुआ, नारियल, केला, और अन्य फल शामिल होते हैं। यह प्रसाद पूरी तरह से शुद्ध और प्राकृतिक होता है, जिसे विशेष रूप से व्रती द्वारा बनाया जाता है। इस पूजा के दौरान पर्यावरण का भी विशेष ध्यान रखा जाता है, और लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर पूजा करते हैं।
Chhat Puja(छठ पूजा) का पर्यावरणीय महत्व
Chhat Puja(छठ पूजा) का पर्यावरणीय महत्व भी बहुत बड़ा है। इस पूजा में लोग जलाशयों के किनारे सूर्य को अर्घ्य देते हैं, जिससे यह पर्व जल और पर्यावरण संरक्षण का भी प्रतीक बनता है। इस पूजा में प्लास्टिक या हानिकारक सामग्रियों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे यह पर्यावरण को सुरक्षित रखने का संदेश देती है।
साथ ही, Chhat Puja(छठ पूजा) के दौरान नदी और तालाबों की सफाई की जाती है, जिससे जल स्रोतों को शुद्ध और सुरक्षित रखा जाता है। इस पूजा के माध्यम से लोग प्रकृति के प्रति अपनी आस्था और समर्पण को व्यक्त करते हैं।
Chhat Puja(छठ पूजा) का सामाजिक महत्व
Chhat Puja(छठ पूजा) केवल धार्मिक या पर्यावरणीय पर्व नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक महत्व भी अत्यधिक है। इस पर्व के दौरान समाज के सभी वर्गों के लोग एकजुट होकर पूजा करते हैं, जिससे सामाजिक समरसता और भाईचारे की भावना प्रबल होती है।
इस पर्व के माध्यम से लोग अपने परिवार और समाज के लिए सुख-समृद्धि की कामना करते हैं और एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सद्भावना का प्रदर्शन करते हैं। इस प्रकार, Chhat Puja(छठ पूजा) समाज को एकजुट करने और सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Chhat Puja(छठ पूजा) भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो सूर्य देव और छठी मइया की आराधना के माध्यम से प्रकृति, समाज और परिवार के प्रति आस्था और समर्पण का प्रतीक है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसका पर्यावरणीय, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी उतना ही बड़ा है।
Chhat Puja(छठ पूजा) का कठिन व्रत और अनुशासन इस पर्व को और भी विशेष बनाते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि अनुशासन, समर्पण और आस्था के साथ जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। साथ ही, यह पर्व हमें प्रकृति और समाज के साथ सामंजस्य बनाकर जीने की प्रेरणा भी देता है।
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